सखी री ठाढ़े नंदकिसोर।वृंदाबन में मेहा बरसत, निसि बीती भयो भोर।नील बसन हरि-तन राजत हैं, पीत स्वामिनी मोर।’हरीचंद’ बलि-बलि ब्रज-नारी, सब ब्रजजन-मनचोर॥
बँसुरिआ मेरे बैर परी – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Bansuriya Mere Bair Pari – Bharatendu Harishchandra
बँसुरिआ मेरे बैर परी।छिनहूँ रहन देति नहिं घर में, मेरी बुद्धि हरी।बेनु-बंस की यह प्रभुताई बिधि हर सुमति छरी।’हरीचंद’ मोहन बस कीनो, बिरहिन ताप करी॥
परदे में क़ैद औरत की गुहार – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Parde Mein Kaid Aurat Ki Guhar – Bharatendu Harishchandra
लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो।सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥लहँगा दुपट्टा नीको न लागै।मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।वै गोरिन हम रंग सँवलिया।नदिया प बँगला छवाय नाहीं देत्यो॥सरसों का उबटन हम ना लगइबे।साबुन से देहियाँ मलाय नाहीं देत्यो॥डोली मियाना प कब लग डोलौं।घोड़वा प काठी कसाय नाहीं देत्यो॥कब लग बैठीं काढ़े घुँघटवा।मेला तमासा जाये नाहीं […]
ऊधो जो अनेक मन होते – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Udho Jo Anek Mann Hote – Bharatendu Harishchandra
ऊधो जो अनेक मन होतेतो इक श्याम-सुन्दर को देते, इक लै जोग संजोते। एक सों सब गृह कारज करते, एक सों धरते ध्यान।एक सों श्याम रंग रंगते, तजि लोक लाज कुल कान। को जप करै जोग को साधै, को पुनि मूँदे नैन।हिए एक रस श्याम मनोहर, मोहन कोटिक मैन। ह्याँ तो हुतो एक ही मन, […]
यमुना-वर्णन – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Yamuna Varnan – Bharatendu Harishchandra
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।झुके कूल सों जल-परसन हित मनहु सुहाये॥किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा।कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥मनु आतप वारन तीर कौं, सिमिटि सबै छाये रहत।कै हरि सेवा हित नै रहे, निरखि नैन मन सुख लहत॥१॥ तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति ।जल […]
गंगा-वर्णन – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Ganga Varnan – Bharatendu Harishchandra
नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक सी सोहति।बिच-बिच छहरति बूंद मध्य मुक्ता मनि पोहति॥ लोल लहर लहि पवन एक पै इक इम आवत ।जिमि नर-गन मन बिबिध मनोरथ करत मिटावत॥ सुभग स्वर्ग-सोपान सरिस सबके मन भावत।दरसन मज्जन पान त्रिविध भय दूर मिटावत॥ श्रीहरि-पद-नख-चंद्रकांत-मनि-द्रवित सुधारस।ब्रह्म कमण्डल मण्डन भव खण्डन सुर सरबस॥ शिवसिर-मालति-माल भगीरथ नृपति-पुण्य-फल।एरावत-गत गिरिपति-हिम-नग-कण्ठहार कल॥ सगर-सुवन […]