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खिलौना माटी का – प्रदीप | Khilona Maati Ka – Pradeep

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तूने खूब रचा भगवान्
खिलौना माटी का
इसे कोई ना सका पहचान
खिलौना माटी का

वाह रे तेरा इंसान विधाता
इसका भेद समझ में ना आता
धरती से है इसका नाता
मगर हवा में किले बनाता
अपनी उलझन आप बढाता
होता खुद हैरान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा
भगवान् खिलौना माटी का

कभी तो एकदम रिश्ता जोड़े
कभी अचानक ममता तोड़े
होके पराया मुखड़ा मोड़े
अपनों को मझधार में छोड़े
सूरज की खोज में इत उत दौड़े
कितना ये नादान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा
भगवान् खिलौना माटी का

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