कर्मवीर – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ | Karamveer – Ayodhya Singh Upadhyay “Hariaudh”
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहींरह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहींकाम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहींभीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहींहो गये …

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहींरह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहींकाम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहींभीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहींहो गये …

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।मन का विश्वास रगों …

Shakti Aur Kshama Poem Explanation In the “Shakti Aur Kshama” poem, Ramdhari Singh Dinkar shows his interpreting power and forgiveness. According to …

चिड़िया को लाख समझाओकि पिंजड़े के बाहरधरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,वहॉं हवा में उन्हेंअपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना …

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला हैलहरों का यौवन मचला हैआज हृदय में और सिन्धु मेंसाथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज …

गति प्रबल पैरों में भरीफिर क्यों रहूं दर दर खडाजब आज मेरे सामनेहै रास्ता इतना पडाजब तक न मंजिल पा सकूँ,तब तक मुझे न विराम है,चलना हमारा काम है। कुछ कह लिया, कुछ …

मेरी प्रगति या अगति कायह मापदण्ड बदलो तुम,जुए के पत्ते-सामैं अभी अनिश्चित हूँ ।मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,कोपलें उग रही हैं,पत्तियाँ झड़ रही हैं,मैं नया …

एक तीखी आँच नेइस जन्म का हर पल छुआ,आता हुआ दिन छुआहाथों से गुजरता कल छुआहर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा,फूल-पत्ती, फल छुआजो मुझे छूने चलीहर उस हवा का आँचल छुआ… …

…क्योंकि सपना है अभी भीइसलिए तलवार टूटी अश्व घायलकोहरे डूबी दिशाएंकौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिलकिन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी …

The wounded snake its hood unfurls,The flame stirred up doth blaze,The desert air resounds the callsOf heart-struck lion’s rage. The cloud puts forth it …

वर्षों तक वन में घूम-घूम,बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,पांडव आये कुछ और निखर।सौभाग्य न सब दिन सोता है,देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह …

राह में मुश्किल होगी हजार,तुम दो कदम बढाओ तो सही,हो जाएगा हर सपना साकार,तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही। मुश्किल है पर इतना भी नहीं,कि तू कर ना सके,दूर है मंजिल …

हो गये हैं स्वप्न सब साकार कैसे मान लें हम।टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान लें हम। आ गया स्वातंत्र्य फिर भी चेतना आने न पाई।प्रगति के ही नाम श्रध्दा और श्रम …

एक दुख की घनी बनी अँधियारीसुख के टिमटिम दूर सितारेउठती रही पीर की बदलीमन के पंछी उड़-उड़ हारेबची रही प्रिय आँखों सेमेरी कुटिया एक किनारेमिलता रहा स्नेह-रस …

इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यहीपर्वत से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यहीअंबर में सिर, पाताल चरणमन इसका गंगा का बचपनतन वरण वरण मुख निरावरणइसकी छाया में जो …

उठो धरा के अमर सपूतोपुनः नया निर्माण करो।जन जन के जीवन में फिर सेनई स्फूर्ति, नव प्राण भरो। नया प्रात है, नई बात है,नई किरण है, ज्योति नई।नई उमंगें, नई तरंगे,नई …

देखो कोयल काली हैपर मीठी है इसकी बोलीइसने ही तो कूक–कूक करआमों में मिसरी घोली कोयल कोयल सच बतलाओक्या संदेशा लाई होबहुत दिनों के बाद आज फिरइस डाली पर आई हो क्या …

तूने खूब रचा भगवान्खिलौना माटी काइसे कोई ना सका पहचानखिलौना माटी का वाह रे तेरा इंसान विधाताइसका भेद समझ में ना आताधरती से है इसका नातामगर हवा में किले …

अपनी माँ की किस्मत पर मेरे बेटे तू मत रोमैं तो काँटों में जी लुंगी जा तू फूलों पर सोअपनी माँ की किस्मत पर… तू ही मेरे दिन का सूरज तू मेरी रात का चंदाएक …

चरागों का लगा मेला ये झांकी खूबसूरत हैमगर वो रौशनी है कहाँमुझे जिसकी जरुरत हैये ख़ुशी लेके मैं क्या करूँमेरी है अब तलक रात काली जगमगाते दियो मत जलोमुझसे रूठी है …

मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटा सा बच्चा हूँतुम हो बड़े बलवानप्रभु जी मेरी लाज रखोमैं एक नन्हा सा मैंने सुना है तुमने यहाँ पेलाखों के दुःख टालेमेरा दुःख भी टालो तो …

चलो चलें मन सपनो के गाँव मेंकाँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव मेंचलो चलें मन… हो रहे इशारे रेशमी घटाओं मेंचलो चलें मन… आओ चलें हम एक साथ वहांदुःख ना …

होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असरझुकी जाए नज़रदेखो छलक पड़ी है मेरे रूप की गागरझुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र इक ऐसी डगर पर आई मेरी उमरदमकी है मेरी दुनिया झमकी …

अमृत और ज़हर दोनों हैं सागर में एक साथमंथन का अधिकार है सबको फल प्रभु तेरे हाथतेरे फूलों से भी प्यारतेरे काँटों से भी प्यारजो भी देना चाहे देदे करतारदुनिया के …

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिमजिधर भी देखूं मैंअंधकार अंधकारअँधेरे में जो बैठे हैंनज़र उन पर भी कुछ डालोअरे ओ रौशनी वालोबुरे इतने नहीं हैं हमजरा देखो हमे भालोअरे ओ …

किस बाग़ में मैं जन्मा खेलामेरा रोम रोम ये जानता हैतुम भूल गए शायद मालीपर फूल तुम्हे पहचानता हैजो दिया था तुमने एक दिनमुझे फिर वो प्यार दे दोएक क़र्ज़ मांगता …
