देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहींरह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहींकाम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहींभीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहींहो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भलेसब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले। आज करना है जिसे करते उसे हैं आज […]
कोशिश करने वालों की – सोहन लाल द्विवेदी | Koshish Karne Walon Ki – Sohan Lal Dwivedi
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। डुबकियां सिंधु […]
Shakti Aur Kshama – शक्ति और क्षमा | Ramdhari Singh “Dinkar”
Shakti Aur Kshama Poem Explanation In “shakti aur kshama” poem, Ramdhari Singh Dinkar shows is interpreting about power and forgiveness. According to him, Pandavas had demanded their rights, until they got their dilemma, deceit. He resorted to forgiveness every time, but he should be called cowardly every time. But when he resorted to power, then […]
बसंत होली – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Basant Holi – Bharatendu Harishchandra
जोर भयो तन काम को आयो प्रकट बसंत ।बाढ़यो तन में अति बिरह भो सब सुख को अंत ।।1।। चैन मिटायो नारि को मैन सैन निज साज ।याद परी सुख देन की रैन कठिन भई आज ।।2।। परम सुहावन से भए सबै बिरिछ बन बाग ।तृबिध पवन लहरत चलत दहकावत उर आग ।।3।। कोहल अरु […]
दशरथ विलाप – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Dashrath Vilap – Bharatendu Harishchandra
कहाँ हौ ऐ हमारे राम प्यारे ।किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे ।। बुढ़ापे में ये दु:ख भी देखना था।इसी के देखने को मैं बचा था ।। छिपाई है कहाँ सुन्दर वो मूरत ।दिखा दो साँवली-सी मुझको सूरत ।। छिपे हो कौन-से परदे में बेटा ।निकल आवो कि अब मरता हु बुड्ढा ।। बुढ़ापे पर दया […]
बन्दर सभा – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Bandar Sabha – Bharatendu Harishchandra
आना राजा बन्दर का बीच सभा के,सभा में दोस्तो बन्दर की आमद आमद है।गधे औ फूलों के अफसर जी आमद आमद है।मरे जो घोड़े तो गदहा य बादशाह बना।उसी मसीह के पैकर की आमद आमद है।व मोटा तन व थुँदला थुँदला मू व कुच्ची आँखव मोटे ओठ मुछन्दर की आमद आमद है ।।हैं खर्च खर्च […]
इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Inn Dukhiyan Ko Na Chain Sapnehun Milyaun – Bharatendu Harishchandra
इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ,तासों सदा व्याकुल बिकल अकुलायँगी। प्यारे ‘हरिचंद जूं’ की बीती जानि औध, प्रानचाहते चले पै ये तो संग ना समायँगी। देख्यो एक बारहू न नैन भरि तोहिं यातैं,जौन जौन लोक जैहैं तहाँ पछतायँगी। बिना प्रान प्यारे भए दरस तुम्हारे, हाय!मरेहू पै आंखे ये खुली ही रहि जायँगी।
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Dhanya Ye Muni Vrindavan Basi – Bharatendu Harishchandra
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी।दरसन हेतु बिहंगम ह्वै रहे, मूरति मधुर उपासी।नव कोमल दल पल्लव द्रुम पै, मिलि बैठत हैं आई।नैनन मूँदि त्यागि कोलाहल, सुनहिं बेनु धुनि माई।प्राननाथ के मुख की बानी, करहिं अमृत रस-पान।‘हरिचंद’ हमको सौउ दुरलभ, यह बिधि गति की आन॥
हरि-सिर बाँकी बिराजै – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Hari Sir Banki Birajay – Bharatendu Harishchandra
हरि-सिर बाँकी बिराजै।बाँको लाल जमुन तट ठाढ़ो बाँकी मुरली बाजै।बाँकी चपला चमकि रही नभ बाँको बादल गाजै।’हरीचंद’ राधा जू की छबि लखि रति मति गति भाजै॥