बढ़े चलो, बढ़े चलो – सोहन लाल द्विवेदी | Badhe Chalo, Badhe Chalo – Sohan Lal Dwivedi
न हाथ एक शस्त्र हो,न हाथ एक अस्त्र हो,न अन्न वीर वस्त्र हो,हटो नहीं, डरो नहीं,बढ़े चलो, बढ़े चलो रहे समक्ष हिम-शिखर,तुम्हारा प्रण उठे निखर,भले ही जाए जन बिखर,रुको नहीं, झुको नहीं,बढ़े चलो, बढ़े चलो घटा घिरी अटूट हो,अधर में कालकूट हो,वही सुधा का घूंट हो,जिये चलो, मरे चलो,बढ़े चलो, बढ़े चलो गगन उगलता आग …