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किस बाग़ में मैं जन्मा खेला – प्रदीप | Kis Baag Mein Main Janma Khela – Pradeep

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किस बाग़ में मैं जन्मा खेला
मेरा रोम रोम ये जानता है
तुम भूल गए शायद माली
पर फूल तुम्हे पहचानता है
जो दिया था तुमने एक दिन
मुझे फिर वो प्यार दे दो
एक क़र्ज़ मांगता हूँ बचपन उधार दे दो

तुम छोड़ गए थे जिसको
एक धूल भरे रस्ते में
वो फूल आज रोता है
एक अमीर के गुलदस्ते में
मेरा दिल तड़प रहा है मुझे फिर दुलार दे दो
एक क़र्ज़ मांगता हूँ बचपन उधार दे दो…

मेरी उदास आँखों को है याद वो वक़्त सलोना
जब झूला था बांहों में मैं बन के तुम्हारा खिलौना
मेरी वो ख़ुशी की दुनिया फिर एक बार दे दो
एक क़र्ज़ मांगता हूँ बचपन उधार दे दो…

तुम्हे देख उठते है
मेरे पिछले दिन वो सुन्हेरे
और दूर कहीं दिखते हैं
मुझसे बिछड़े दो चेहरे
जिसे सुनके घर वो लौटे मुझे वो पुकार दे दो
एक क़र्ज़ मांगता हूँ बचपन उधार दे दो…

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