POET: मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt

मातृभूमि – मैथिलीशरण गुप्त | Mathrubhoomi – Maithili Sharan Gupta

नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है।सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं।बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥करते अभिषेक पयोद...

भारत माता का मंदिर यह – मैथिलीशरण गुप्त | Bharat Mata Ka Mandir Yah – Maithili Sharan Gupt

भारत माता का मंदिर यहसमता का संवाद जहाँ,सबका शिव कल्याण यहाँ हैपावें सभी प्रसाद यहाँ । जाति-धर्म या संप्रदाय का,नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,सबका स्वागत, सबका आदरसबका...

दोनों ओर प्रेम पलता है – मैथिलीशरण गुप्त | Dono Aur Prem Palta Hai – Maithili Sharan Gupt

दोनों ओर प्रेम पलता है।सखि, पतंग भी जलता है हा!दीपक भी जलता है! सीस हिलाकर दीपक कहता--’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’पर पतंग पड़ कर...

प्रतिशोध – मैथिलीशरण गुप्त | Pratishodh – Maithili Sharan Gupt

किसी जन ने किसी से क्लेश पायानबी के पास वह अभियोग लाया।मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं।नहीं निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं।उन्होंने शांत कर...

नहुष का पतन – मैथिलीशरण गुप्त | Nahush Ka Patan – Maithili Sharan Gupt

मत्त-सा नहुष चला बैठ ऋषियान मेंव्याकुल से देव चले साथ में, विमान मेंपिछड़े तो वाहक विशेषता से भार कीअरोही अधीर हुआ प्रेरणा से मार...

गुणगान – मैथिलीशरण गुप्त | Maithili Sharan Gupt

तेरे घर के द्वार बहुत हैं,किसमें हो कर आऊं मैं?सब द्वारों पर भीड़ मची है,कैसे भीतर जाऊं मैं? द्वारपाल भय दिखलाते हैं,कुछ ही जन जाने...

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