हम पंछी उन्मुक्त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाऍंगेकनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे। हम बहता जल पीनेवालेमर जाऍंगे भूखे-प्यासेकहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से। स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूलेबस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील गगन की सीमा पानेलाल किरण-सी चोंच […]