धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी।
दरसन हेतु बिहंगम ह्वै रहे, मूरति मधुर उपासी।
नव कोमल दल पल्लव द्रुम पै, मिलि बैठत हैं आई।
नैनन मूँदि त्यागि कोलाहल, सुनहिं बेनु धुनि माई।
प्राननाथ के मुख की बानी, करहिं अमृत रस-पान।
‘हरिचंद’ हमको सौउ दुरलभ, यह बिधि गति की आन॥
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Dhanya Ye Muni Vrindavan Basi – Bharatendu Harishchandra
- ADVERTISEMENT -
- Advertisement -